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  • av Ernest Hamingway
    485

  • av Thakur Jagmohan Singh
    545,-

  • av Bhagwan Singh
    499,-

  • av Rajendra Mishra
    499,-

  • av Ed Abdul Mugni, Tr Surjit & Ismat Chugtai
    249 - 459

  • av Ismat Chugtai
    195 - 415,-

  • av Piyush Mishra
    269 - 445

  • av Olga Tokarczuk
    385,-

    इस संग्रह में तीन कहानियाँ संकलित हैं-'अलमारी', 'कमरे' और 'ऊपरवाले का हाथ'। तीनों कहानियाँ अपने पात्रों के रहस्यमय आन्तरिक मनोजगत का दिलकश उद्घाटन करती हैं। अपने लिए एक सुरक्षित जगह तलाश करने की मनुष्य की आदिम इच्छा का वर्णन 'अलमारी' में बेहद खूबसूरती के साथ किया गया है। वहीं 'कमरे' कहानी में एक होटल के विभिन्न कमरों के बहाने इंसानी जीवन के स्याह-सफेद को बहुत दिलचस्प ढंग से रेखांकित किया गया है। 'ऊपरवाले का हाथ' में कम्प्यूटर का माहिर नायक मनुष्य और सभ्यता की कुछ नियतिबद्ध अपरिहार्यताओं की तरफ इशारा करता है। अत्यन्त पठनीय कहानियाँ। राजकमल प्रकाशन समुह की अनुमति से यह पुस्तक का अंश प्रकाशित किया गया है. ऐसी गंदगी केवल बच्चे छोड़ सकते हैं आधा छिला हुआ संतरा बिस्तरे पर, मगों में रस, पाँव के नीचे दबा हुआ टूथपेस्ट कालीन पर। सजाए हुए कागज के टुकड़े, महँगी दूकानों से खरीदे हुए कपड़ों की कीमतों के पर्चे, तकिये ठूँसे हुए अलमारी के अंदर, टूटी हुई होटल की पेंसिल, सूटकेस का सामान उलटाया हुआ आरामकुर्सी पर, पोस्टकार्ड जिसमें पते के अलावा कुछ भी लिखा नहीं, चलता हुआ टी.वी., ऊपर किये हुए पर्दे, ए.सी. पर सूखते हुए मोजे और कच्छे, छितरे हुए सिगरेट, राखदानी भरी हुई तरबूज के बीजों से। कमरा, जिसमें अमेरिका के लोग रहते हैं हास्योत्पादक होता है, उसकी संजीदगी खत्म कर दी गई होती है, सब कुछ उससे दोस्ती बनाने के बहाने से। इसी तरह गुलाबी और हल्के पीले, खूबसूरत कमरा नं. 223 की बेइज्जती की गई है। लगता है कि एक अधेड़ उम्र के सज्जन को विदूषक के कपड़े पहनाये गए हों। -इसी पुस्तक से राजकमल प्रकाशन समुह की अनुमति से यह पुस्तक का अंश प्रकाशित किया गया है.

  • av Nand Chaturvedi
    415,-

  • av Ashok Vajpeyi
    459

  • av Ed Ramsharan Joshi
    459

    Contributed articles on various aspects of Indian diaspora.

  • av Badal Sarkar
    399,-

  • av Sarvendra Vikram
    415,-

  • av Gopal Ray
    545,-

    गोपाल राय हिन्दी कथा साहित्य के प्रतिष्ठित विश्लेषक और प्रामाणिक इतिहासकार हैं। हिन्दी कहानी के सुदीर्घ इतिहास के प्रत्येक पक्ष पर उन्होंने विस्तार से लिखा है। 'हिन्दी कहानी का इतिहास' शीर्षक से ये उद्भव से लेकर अब तक की हिन्दी कहानी की रचना-यात्रा को लिपिबद्ध कर रहे हैं। इस पुस्तक के दो खंड प्रकाशित हो चुके हैं। प्रस्तुत पुस्तक इसी महत्त्वपूर्ण योजना का तीसरा खंड है। पहले खंड में 1900-1950 ई. तक की हिन्दी कहानी का इतिहास प्रस्तुत किया गया है। दूसरे खंड में 1951-1975 की हिन्दी कहानी का लेखा-जोखा है। इस तीसरे खंड में 1976 से 2000 के बीच विकसित हिन्दी कहानी का व्यवस्थित इतिहास है। लेखक के अनुसार, 'इस अवधि में जो कहानी-साहित्य रचा गया, उसकी सीमाएँ तो हैं, पर उसका आलेखन और मूल्यांकन कम जरूरी नहीं है। इक्कीसवीं सदी में जो कहानी-साहित्य रचा जा रहा है, उसकी नींव के रूप में इसका विवेचन आवश्यक है।' पुस्तक की खास विशेषता यह भी है कि कहानी की सक्रियताओं के साथ लेखक ने उन विभिन्न सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक व सांस्कृतिक स्थितियों का भी विश्लेषण किया है। जिनका प्रभाव अनिवार्य रूप से रचनाशीलता पर पड़ता है, तथ्यों की प्रामाणिकता और प्रवृत्तियों के विश्लेषण की क्षमता इसे विशेष रूप से उल्लेखनीय कृति बनाती है। हिन्दी कहानी के विकासेतिहास में रुचि रखने वाले पाठकों, शोधार्थियों व लेखकों के लिए समान रूप से महत्त्वपूर्ण कृति।

  • av Arun Bholey
    445

  • av Suryakant Tripathi 'Nirala'
    415,-

  • av Krishna Kumar
    415,-

    यह पुस्तक लड़कियों के मानस पर डाली जाने वाली सामाजिक छाप की जांच करती है । वैसे तो छोटी लड़की को बच्ची कहने का चलन है, पर उसके दैनंदिन जीवन की छानबीन ही यह बता सकती है कि लड़कियों के सन्दर्भ में 'बचपन' शब्द की व्यंजनाएँ क्या हैं । कृष्ण कुमार ने इन व्यंजनाओं की टोह लेने के लिए डॉ परिधियाँ चुनी हैं । पहली परिधि है घर के सन्दर्भ में परिवार और बिरादरी द्वारा किए जाने वाले समाजीकरण की । इस परिधि की जांच संस्कृति के उन कठोर और पीने औजारों पर केन्द्रित है जिनके इस्तेमाल से लड़की को समाज द्वारा स्वीकृत औरत के सांचे में ढाला जाता है । दूसरी परिधि है शिक्षा की जहाँ स्कूल और राज्य अपने सीमित दृष्टिकोण और संकोची इरादे के भीतर रहकर लड़की को एक शिक्षित नागरिक बनाते हैं । लड़कियों का संघर्ष इन डॉ परिधियों के भीतर और इनके बीच बची जगहों पर बचपन भर जारी रहता है । यह पुस्तक इसी संघर्ष की वैचारिक चित्रमाला है ।.

  • av Soma Bandopadhyay
    485

    Comparative study on the life and fictional works of Phaònåiâsvaranåatha Reònu, 1921-1977, Hindi author and Tåaråaâsaçnkara Bandyopåadhyåaçya, 1898-1971, Bengali author.

  • av Malvender Jit Singh Waraich
    515,-

    यह पुस्तक 'भगत सिंह को फांसी-1' का ही दूसरा भाग है ! इसमें लाहोर साजिश केस के दौरान हुई 457 गवाहियों में से महत्तपूर्ण गवाहियों के तो पूर्ण विवरण दिए गए हैं जबकि शेष गवाहियों के तथ्य-सार दिए गए हैं ! शहीद सुखदेव ने इस दस्तावेज का बारीकी से अध्ययन किया था और उनके द्वारा अंकित की गई टिप्पणियों का उल्लेख सम्बंधित गवाहियों के ब्योरे में किया गया है ! यहाँ यह कहना भी प्रासंगिक है कि इस एतिहासिक दस्तावेज को पहली बार प्रकाशित किया जा रहा है, जिसके द्वारा पाठको को अनेक विचित्र तथ्य जानने का अवसर प्राप्त होगा ! जिक्र योग्य है कि ये गवाहियों विशेष ट्रिब्यूनल के समक्ष 5 मई, 1930 से 26 अगस्त, 1930 तक हुई थीं, जबकि इससे पूर्व 10 जुलाई, 1929 से 3 मई, 1930 तक मुकदमा विशेष मजिस्ट्रेट की अदालत में चला थ

  • av Mohanlal Bhaskar
    445

    मैं पाकिस्तान में भारत का जासूस था - मोहनलाल भास्कर जासूसी को लेकर विश्व की विभिन्न भाषाओँ में अनेक सत्यकथाए लिखी गई हैं, जिनमे मोहनलाल भास्कर नमक भारतीय जासूस द्वारा लिखित अपनी इस आपबीती का एक अलग स्थान है ! इसमें 1965 के भारत-पाक युध्ह के दौरान उसके पाकिस्तान-प्रवेश, मित्रघात के कारण उसकी गिरफ़्तारी और लम्बी जेल-यातना का यथातथ्य चित्रण हुआ है! लेकिन इस कृति के बारे में इतना ही कहना नाकाफी है क्योंकि यह कुछ साहसी और सूझबूझ-भरी घटनाओं का संकलन मात्र नहीं है, बल्कि पाकिस्तान के तत्कालीन हालत का भी ऐतिहासिक विश्लेषण करती है! इसमें पाकिस्तान के तथाकथित भुत्तोवादी लोक्तान्रा, निरंतर मजबूत होते जा रहे तानाशाही निजाम तथा धार्मिक कठमुल्लावाद और उसके सामाजिक-आर्थिक अंतर्विरोधों को उधान्दने के साथ-साथ भारत-विरोधी षड्यंत्रों के उन अन्तराष्ट्रीय सूत्रों की भी पड़ताल की गई है, जिसके एक असाध्य परिणाम को हम 'खालिस्तानी' नासूर की शक्ल में झेल रहे हैं! उसमें जहाँ एक और भास्कर ने पाकिस्तानी जेलों की नारकीय स्थति, जेल-अधिकारीयों के अमानवीय व्यव्हार के बारे में बताया है, वहीँ पाकिस्तानी अवाम और मेजर अय्याज अहमद सिप्रा जैसे व्यकी के इंसानी बर्ताव को भी रेखांकित किया है !

  • av Nandkishore Naval
    415,-

  • av Abdul Bismillah
    545,-

    Collection of stories of a Hindi author; previously publsihed.

  • av Pawan Kumar Verma
    429

  • av Kumar Mithilesh Prasad Singh
    445

  • av Akhilesh
    445

    Kahaniyan Rishton Ki: Dada-Dadi, Nana-Nani

  • av Akhilesh
    445

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