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Böcker av Udbhav Mishra

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  • av Udbhav Mishra
    199,-

    उद्भव मिश्र को पढ़कर ऐसा लगता है कि कूडे-कचरे,राख-रेत से बलात् ढक दिया गया ज्वालामुखी जमीन के नीचे धधक रहा है,जिसके लावे बाहर आने को बेचैन हैं,क्योंकि ये कवितायें ऐसे समय में आयी है जब आदमी बस एक उपभोक्ता भर रह गया हो ।सोच-विचार,स्नेह-प्रेम,करुणा और प्रतिरोध के लिए समय का अकाल पड़ चुका हो ।संवेदना क्या ? नागरिक और आदमी होने का बोध तक खत्म हो चुका हो।ऐसे समय का छायांकन सहज,सपाट में शब्दो में यह कह देना साहस का काम है जैसे- अब दानव का / मानवीय चेहरा होगा, क्रांति नहीं होगी दुनिया में / हर शोषित अंधा बहरा होगा ? इस तरह संग्रह की प्रत्येक कविता श्रृंगार से शुरु होकर प्रतिरोध के भंगिमा में पूरी होती है-जैसे मुर्गियाँ उदास नहीं होती है,चुप्पी का तूफान,यह लड़की, एक प्रेमपत्र,शाहीन बाग में भारत माता,कैसे कहें बसंत है,बकरी, चप्पलें, साहित्य शून्य,चादर,पेड़ आदि शीर्षको के बहाने,ये कवितायें समकालीन

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