Marknadens största urval
Snabb leverans

Böcker av Om Prakash Prasad

Filter
Filter
Sortera efterSortera Populära
  • av Om Prakash Prasad
    275,-

    ¿¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿-¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿-¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿, ¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿, ¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿ ¿¿¿, ¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿ $¿¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿-¿¿¿-¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿, ¿¿¿¿¿¿¿¿, ¿¿¿¿¿, ¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿-¿¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿-¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿ ¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿, ¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿, ¿¿¿¿, ¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿, ¿¿¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿ $¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿¿¿, ¿¿¿¿¿¿, ¿¿¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿ 1882 ¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿ 1914 ¿¿¿ ¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿$¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿ 1945 ¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿¿¿¿¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿ ¿¿¿ ¿¿¿¿¿ ¿¿ ¿¿¿¿

  • av Om Prakash Prasad
    515,-

    हमारे यहाँ विज्ञान की जो तरक्की बहुत ज़्यादा नहीं हो सकी, उसका प्रमुख कारण जातिभेद रहा। मेहनत-मशक्कत यानी शूद्र शिल्पकारों के योगदान को सुविधाभोगियों और धार्मिक ग्रन्थों ने छोटा काम समझ लिया; वेदान्त ने संसार को मिथ्या माया बताया, ऐसे में पृथ्वी को जानने-समझने का उत्साह कहाँ से आएगा। ध्यान से बड़ा है विज्ञान; जानने को ही विज्ञान कहते हैं। वैज्ञानिक कोई व्यक्ति नहीं, बल्कि एक दृष्टि, एक विचार होता है।यूँ तो भारत में वैज्ञानिक प्रागैतिहासिक काल से पाए जाते हैं किन्तु उनका नाम-पता हमें ज्ञात नहीं है। विश्व-प्रसिद्ध सिन्धु-सभ्यता का निर्माण ऐसे ही अनजान वैज्ञानिकों ने किया था। भूख, रोग, सर्दी एवं गर्मी से हमारी सुरक्षा भी वैज्ञानिकों ने की। पशुपालन और खेती से नया युग आया। इससे आदिम समाज का $खात्मा और श्रेणी अर्थात् वर्गीय समाज का आरम्भ हुआ। व्यापार की तरक्की, रोज़मर्रा के कामों में रुपए-पैसे का चलन और शहरों का जन्म-इन ऐतिहासिक घटनाओं ने शिल्पकार-शूद्र-कृषक वर्ग के पैरों में पड़ी ज़ंजीरों को खोलने का उपाय किया। परम्परावादी बन्धन अपने आप ढीले हो गए। माना जाने लगा कि आज़ाद लोग अच्छी और स$ख्त मेहनत करते हैं।पुरानी सभ्यताओं की टूटी-फूटी निशानियाँ धरती की छाती पर आज भी शेष हैं। यह स्पष्ट करने के लिए कि विज्ञान ही इतिहास का वास्तविक निर्माता होता है, इस पुस्तक में कुछ नवीन शीर्षक वाले लेखों को रखा गया है। इनमें प्रमुख हैं-प्राचीन विज्ञान एवं वैज्ञानिक, महाभारत, रामायण, शूद्र, मन्दिर, सिक्के, कला में विज्ञान, दक्षिण भारतीय अभिलेख, ज्योतिष विद्या मिथक या यथार्थ, शिल्पकार आदि।अभी तक इतिहास की मुख्यधारा से जनसाधारण को अलग ही रखा गया है। उदाहरण के लिए किसान-मज़दूर, ईमारत बनाने वाले, बढ़ई, मछुआरा, हज्जाम, दाई, चरवाहा, कल-कार$खान

  • av Om Prakash Prasad
    489,-

    सल्तनत काल में चरखा भारत में लोकप्रिय हुआ। इर$फान हबीब कहते हैं कि निश्चित रूप से चरखा और धुनिया की कमान सम्भवत 13वीं और 14वीं शताब्दी में बाहर से भारत आए होंगे। प्रमाण मिलते हैं कि का$गज़ लगभग 100 ई. के आसपास चीन में बनाया गया। जहाँ तक भारत का प्रश्न है, अलबरूनी ने स्पष्ट किया है कि 11वीं सदी के आसपास प्रारम्भिक वर्षों में मुस्लिम पूरी तरह से का$गज़ का इस्तेमाल करने लगे थे। बहरत में इसका निर्माण तेरहवीं शताब्दी में ही आरम्भ हुआ जैसा कि अमीर खुसरो ने उल्लेख किया है।भारत में मुस्लिम सल्तनतों के स्थापित होने के बाद अरबी चिकित्सा विज्ञान ईरान के मार्ग से भारत पहुँचा। उस समय तक इसे यूनानी तिब्ब के नाम से जाना जाता था। परन्तु अपने वास्तविक रूप में यह यूनानी, भारतीय, ईरानी और अरबी चिकित्सकों के प्रयत्नों का एक सम्मिश्रण था। इस काल में हिन्दू वैद्यों और मुस्लिम हकीमों के बीच सहयोग एवं तादात्म्य स्थापित था। भारतीय चिकित्सा विज्ञान की दृष्टि से मुगल साम्राज्य को स्वर्णिम युग कहा जा सकता है। दिल्ली की वास्तु-कला का वास्तविक गौरव भी मुगलकालीन है। संगीत के क्षेत्र में सितार और तबला भी मुस्लिम संगीतज्ञों की देन है।विभिन्न क्षेत्रों के इन्हीं सब तथ्यों के दायरे में यह पुस्तक तैयार की गई है। तीस अध्यायों की इस पुस्तक में खास के विपरीत आम के कारनामों एवं योगदानों पर रोशनी डालने का प्रयास किया गया है। व्हेनत्सांग के विवरण को सबसे पहले पेश किया गया है ताकि मध्यकाल की सामन्तवादी पृष्ठभूमि को भी समझा जा सके। धातु तकनीक, रजत तकनीक, स्वर्ण तकनीक, कागज़ का निर्माण आदि के आलावा लल्ल, वाग्भट, ब्रह्मगुप्त, महावीराचार्य, वतेश्वर, आर्यभट द्वितीय, श्रीधर, भास्कराचार्य द्वितीय, सोमदेव आदि व्यक्तित्वों के कृतित्व पर भी शोध-आधारित तथ्यों के साथ

  • av Om Prakash Prasad
    585,-

    अर्थशास्त्र मात्र राजनीतिशास्त्र की पुस्तक नहीं, इसमें राजतंत्रात्मक शासन-पद्धतियों का ऐतिहासिक अध्ययन भी होता है । कौटिल्य ने अर्थशास्त्र के तमाम पहलुओं पर विचार करते हुए इसे राजनीतिविज्ञान भी माना है । इसीलिए कौटिल्य का सारा ज़ोर राजा, राजकोष, प्रजा और शासन के केन्द्रीकरण पर था । 'कौटिल्य का अर्थशास्त्र एक ऐतिहासिक अध्ययन' इस अर्थ में महत्त्वपूर्ण है कि भारत के इस पहले अर्थशास्त्र ग्रन्थ को सदियों के मत-मतान्तरों के परिपे्रक्ष्य में समकालीनता की नई दृष्टि के साथ गहराई और गम्भीरता से देखा-परखा गया है, ताकि अर्थशास्त्र के मूल को मूलत परिभाषित और आत्मसात् किया जा सके । यह पुस्तक ऐतिहासिक अध्ययन के साथ-साथ यह विमर्श भी खड़ा करती है कि इतिहास-प्रदत्त किसी भी प्रकार के सामाजिक, राजनीतिक एवं धार्मिक बदलाव में आर्थिक कारण को सर्वाधिक ठोस कारण मानने का सिलसिला अभी भी जारी है । नए शोधकार्यों ने अब यह प्रश्न खड़ा किया है कि सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक बदलाव का अगर प्रधान कारण आर्थिक परिवेश होता है तो आर्थिक बदलाव किस तथ्य पर आधारित है ? 21वीं सदी में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर इस तथ्य को स्वीकृति मिली है कि आर्थिक बदलाव का सबसे ठोस आधार होता हैµविज्ञान एवं प्रौद्योगिकी । पूरा विश्व इस तथ्य को स्वीकारने लगा है कि जिस देश में जिस समय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की जैसी स्थिति रही वैसी ही उसकी आर्थिक स्थिति रही और जैसी आर्थिक स्थिति रही वैसी ही सामाजिक और राजनीतिक दशा । इससे स्पष्ट है कि कौटिल्य की निरंकुश नीतियों के मूल में वैज्ञानिकता अपनी अहम भूमिका में थी कि बग़ैर इसके सशक्त और विशाल साम्राज्य की स्थापना सम्भव नहीं, और इसके लिए राजा प्रजा की सुख-सुविधाओं एवं उसकी भलाई की व्यवस्था करनेवाला एक व्यवस्थापक मात्र है, जिनकी अवह

Gör som tusentals andra bokälskare

Prenumerera på vårt nyhetsbrev för att få fantastiska erbjudanden och inspiration för din nästa läsning.