Marknadens största urval
Snabb leverans

Böcker av Leeladhar Jagudi

Filter
Filter
Sortera efterSortera Populära
  • av Leeladhar Jagudi
    455,-

    जितने लोग उतने प्रेम उम्र का 70वाँ पड़ाव पार करने के बाद लीलाधर जगूड़ी के 53 वर्ष के काव्यानुभव का नतीजा है उनका यह 12वाँ कविता संग्रह 'जितने लोग उतने प्रेम' । अपने हर कविता संग्रह में जगूड़ी अपनी कविता के लिए अलग-अलग किस्म के नए गद्य का निर्माण करते रहे हैं । उनके लिए कहा जाता है कि वे गद्य में कविता नहीं करते बल्कि कविता के लिए नया गद्य गढ़ते हैं । यही वजह है कि उनकी कविता में कतिपय कवियों की तरह केवल कहानी नहीं होती, न वे कविता की जगह एक निबन्/ा लिखते हैं । उन्होंने एक जगह कहा है कि ''कहानी तो नाटक में भी होती है पर वह कहानी जैसी नहीं होती । अपनी वर्णनात्मकता के लिए प्रसिद्ध वक्तव्य या निबन्/ा, नाटक में भी होते हैं पर उनमें नाट्य तत्त्व गुँथा हुआ होता है । वे वहाँ नाट्य वि/ाा के अनुरूप ढले हुए होते हैं । कविता में भी गद्य को कविता के लिए ढालना इसलिए चुनौती है क्योंकि 'तुक' को छन्द अब नहीं समझा जाता । आज कविता को गद्य की जिस लय और श्वासानुक्रम की जरूरत है, वही उसका छन्द है । तुलसी ने कविता को 'भाषा निबन्धमतिमंजुलमातनोति' कहा है । अर्थात भाषा को नए ढंग से बाँधने का उपक्रम कर रहा हूँ । बोली जानेवाली भाषा भी श्वासाधारित है । अत% भाषा बाँधना भी हवा बाँधने की तरह का ही मुश्किल काम है ।'' लीलाधर जगूड़ी की कविता की यह भी विशेषता है कि वे अनुभव की व्यथा और घटनाओं की आत्मकथा इस तरह पाठक के सामने रखते हैं कि उनका यह कथन सही लगने लगता है कि-'कविता का जन्म ही कथा कहने के लिए और भाषा में जीवन नाट्य रचने के लिए हुआ है ।' वे अक्सर कहते हैं कि 'कविता जैसी कविता से बचो ।' 24 वर्ष की उम्र में उनका पहला कविता संग्रह आ गया था । 1960 से यानी कि 20वीं सदी के उत्तरार्द्ध से 21वीं सदी के दूसरे दशक में भी उनकी कविता का गद्य समकालीन साहित्य की दुनिया में किसी न किसी नए संस्पर्श के लिए प्र

  • av Leeladhar Jagudi
    445,-

Gör som tusentals andra bokälskare

Prenumerera på vårt nyhetsbrev för att få fantastiska erbjudanden och inspiration för din nästa läsning.