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  • av 2337, &2377, &23, m.fl.
    685,-

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  • av &23, &2346, 2342, m.fl.
    145,-

  • av &2379, &23, &2340, m.fl.
    185,-

    हर किसी कि ज़िन्दगी में प्यार का अहम किरदार होते है किसी की ज़िन्दगी में ये किरदार अच्छे होते है तो किसी के खराब पर फिर प्यार किसी ना किसी मायने में जुड़ा रहता है हम सब से। कोई प्यार जता देता है तो कोई बता देता और कुछ अपने दिल में हि इसे छुपा के रखता है, कभी दोस्ती टूट जाने के डर से तो कभी इश्क़ मुकम्मल ना होने के डर में सहमा रहता है बस ये नादान दिल है जो नादानियां करता रहता है और सारे दुःख दर्द को जानते हुए भी ये इश्क़ करता रहता है। किसी कि दिल की बात तो किसी के जुबां की बात इन शब्दों के जाल से कविताओं में पिरोई है, किसी के दिल के हालातो को तो किसी के अज़ीज़ से जुड़े प्यार के रिश्तों की अहमियत को संझोई है। प्यार की कोई सीमाएं नहीं है पर कुछ हिस्से को इस पुस्तक में बयां करने की इक चोटी कोशिश की है।

  • av &2309, &23, &2367, m.fl.
    185,-

    फ़रवरी २०२१ से मई २०२१ के बीच देश में बड़े बड़े हालातों ने ऐसी तांडव मचाने की तैयारी कर ली थी जो फलीभूत होने के बाद और विद्रूपता धारण कर लेता, उसी के मद्देनजर लिखी गई रचनाओं का संग्रहीत रुप आपके लिए। खासकर महामारी से चीखती-चिल्लाती आबादी का एक अलग ही दुख है। हर तबकों में परेशानी है हर घर में एक बेचैनी है, गांवों के हर नुक्कड़ पर एक क्रंदन है, चिकित्सालयों में खौफ और दहशत का मंजर है, इंसानियत सहम गई है। इन हालातो को शब्दों का जामा पहनाकर उसे कालजयी बनाने की यह कोशिश इसलिए की गई है कि इतिहास ऐसी विकट स्थिति को याद रखे कि परम पिता परमेश्वर की सत्ता को चुनौती देने की सोच भी मखलूक की बर्बादी का सबब हो सकती है।

  • av &23, &2375, &2367, m.fl.
    185,-

    विवेक शैलार एक ऐसे कवि हैं जिन्होंने अनेकानेक कवितायें लिखीं और उन्होंने कविता लिखना बचपन से ही आरम्भ कर दिया था । किन्तु उन्हें अपनी कविताओं के प्रकाशन हेतु लम्बा इंतज़ार करना पड़ा जो की आज पेंसिल पब्लिकेशन के कारण संभव हो पा रहा है । ये कवितायें न सिर्फ संघर्ष की प्रेरणा देती हैं, बल्कि दर्द और उदासी से भरे मन को सुकून के अहसास तक ले जाती हैं । कहीं सच्चाई का अहसास करवाती हैं, तो कहीं उम्मीद और उत्साह भर देती हैं । कहीं देश प्रेम की भावना से जज्बातों में उबाल ला देती हे तो कही ज़माने भर को चुनौती देती हैं । उम्मीद करता हूँ की पाठकगण इन्हे पढ़कर न सिर्फ एक नए जोश से सराबोर हो जायेंगे, बल्कि ख्यालों और विचारों के एक नए जगत में प्रवेश उनकी कल्पना को जीवन के उच्चतम शिखर तक ले जायेगा । इन्ही भावनाओं के साथ । आपका विवेक शैलार MB- 9893312811. email id: - vivek123shelar@gmail.com

  • av &2309, &23, &2367, m.fl.
    169,-

    पुस्तक के संदर्भ में जेलखाना हो या महिला छात्रावास,कॉलेज होस्टल हो या होटल,रेलवे स्टेशन हो या बस अड्डा,सड़क किनारे स्थित ढाबा,लाइन होटल हो या फिर बालिका गृह,महिला आवास गृह सभी जगहों पर देह व्यापार ने अपनी जड़ें जमा ली हैं ।बहुत जगहों पर तो सेक्स वर्करों को लाइसेंस तक होता है लेकिन इन लाइसेंसी सेक्स वर्करों से कई गुना ज्यादा गैर लाइसेंसी और हाई फाई सेक्स वर्कर हैं । लेखक ने अपनी पुस्तक के माध्यम से जिन समस्याओं को उभारा है,उस पर सरकार और समाज को गंभीरता से विचार करना चाहिए ।व्यापक सुधार के प्रयास होना चाहिए अन्यथा इस देश की संस्कृति नष्ट होने के कगार पर पहुंच जाएगी ।

  • av &2366, &2358, &23, m.fl.
    199,-

    व्यापार की दुनिया में एक स्टार्ट-अप एक कंपनी है जिसे एक बड़े बाजार को आकर्षित करके बहुत तेज़ी से बढ़ने के लिए डिज़ाइन किया गया है। आमतौर पर स्टार्ट-अप बोलना अपनी प्रारंभिक अवस्था में एक कंपनी है, हालांकि हर नवगठित कंपनी स्टार्ट-अप नहीं है। वास्तव में, दुनिया में हर साल लाखों कंपनियां शुरू होती हैं लेकिन केवल छोटे अंशों को स्टार्ट-अप माना जाता है। इसके अतिरिक्त, स्टार्ट-अप अक्सर विघटनकारी होते हैं I वे ऐसे उत्पादों या सेवाओं का उत्पादन या संचालन करते हैं जो अभी तक अस्तित्व में नहीं हैं या किसी उद्योग में किसी विशेष अच्छा या सेवा के वितरण को काफी बदल रहे हैं। एक स्टार्ट-अप आमतौर पर उन मूल्यवान विचारों की तलाश में रहता है, जिन्हें ज्यादातर आम जनता या तो समझ नहीं पाती है या बस समझ नहीं पाती है।

  • av &23, &2340, &2367, m.fl.
    259,-

    अभी भी वक़्त है कुछ बिगड़ा नहीं है अभी भी चलो कुछ जाग जाएं अगर सोते रहे अभी भी तो हो सकता है कि कभी संभला ना जाये इसलिए चलो कुछ जाग जाएं बहुत हो चुकी देर जागने में हो गई दोपहर चलो कुछ जाग जाएं यूँ ही चलता रहा अगर, सफ़र ख़त्म हो जाएगा बिना जागे ही इसलिए चलो कुछ जाग जाएं तुम जागे तभी दूसरों को भी जगा पाओगे सोते रहे अगर तो कभी संभल न पाओगे इसलिए चलो कुछ जाग जाएं रास आता है बड़ा सोते रहना बस सोते ही चले जाना पर अब वक़्त है कि चलो कुछ जाग जाएं ये पुस्तक याद दिलाती है एक एहसास कि जीत तब तक़ अधूरी है जब तक सब साथ न हों।

  • av &2366, &23, &2352, m.fl.
    185,-

    प्रस्तुत किताब में जिंदगी के वर्तमान समय की महामारी में लिखी गई कुछ कविताएं सम्मिलित की गई है। इसमें प्यार है तो सलाह भी, हास्य है तो गम्भीरता भी। प्रकृति है तो मनुष्य की हिम्मत मापने के भाव हैं तो मनोबल को बढ़ावा भी। यह एक पूर्ण अभिभूत कविताओं का संग्रह है। कोई कविता हमें वर्तमान से रूबरू कराती है तो कोई आपको बुलंदियों को छूने का हौसला देती है। सरकार गोरखपुरी की भाषा जन सामान्य की भाषा है। उनकी शैली भावात्मक और यथार्थ से परिचय कराती हैं। इनकी कविताएं जमीन और प्रकृति से जुड़ाव महसूस कराती हैं।

  • av &2379, &23, &2350, m.fl.
    199,-

    कविताएँ हृदय को झंकृत करती है, यह कला संसार की ऐसी विद्या है, जिसे हम पढते तो आँखों से है, लेकिन यह हृदय की गहराई में उतर जाती है। संभवतः यही कारण भी है कि रचनाकार अपनी कविताओं को सुगम बनाता है,सरल बनाता है कि वो हरेक इंसान के हृदय को छू सके। फिर ऐसा भी तो है कि कविता समाज का ही आईना होता है, आखिरकार यह उद्धत भी तो समाज के प्र-वर्तमान परिस्थिति, परिवेश,घटित हो रहे घटना का प्रतिबिंब बन कर होता है। कविता में वर्तमान की गहराई, भूतकाल का अंदेशा और भविष्य की आकांक्षा छुपी होती है, जिसे कवि/ लेखक अपने लेखनी के द्वारा उतार लेता है। कविता समय की मांग के अनुसार बदल जाती है, लेकिन उसके तादात्म्य नहीं टूट पाते, वो वर्तमान,भूतकाल और भविष्य का प्रतिनिधित्व करती है और करती रहेगी। मदन मोहन (मैत्रेय)

  • av &23, &2352, &2340, m.fl.
    169,-

    प्रस्तुत पुस्तक में व्यक्ति के जीवन के प्रत्येक पल को प्रेरणा का स्रोत बताने का प्रयास किया है, व्यक्ति जीवन पर्यन्त किसी न किसी रिश्ते अथवा अहसास से जुड़ा रहता है जो उसे प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से प्रेरित करता है। प्रत्येक क्षण के इसी एहसास को प्रेरणा बनाकर सकारात्मक रूप से जीवन में उतारने का प्रयास इस पुस्तक में रचित कविताओं के माध्यम से किया गया है। इसमें व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन के प्रत्येक क्षण के एहसास और सकारात्मक दृष्टिकोण प्रदान किया गया हैं और जीवन की वास्तविकता को प्रकट किया है जो सबकी जिंदगी से अत्यधिक करीब से जुड़ी हुई है

  • av &2366, &23, &2367, m.fl.
    185,-

    कम्बख्त यादें' यह यादें मेरी और आपकी जिंदगी का वो हिस्सा है। जो मुझे अक्सर घर में पड़े चूल्हे के कोयले की तरह लगती है। जो सबकी जिंदगियों में सिर्फ एक बार ही जलता है। (जिया जाता) और यादों की हवा चलने पर हमारे अंदर ही धीरे - धीरे सुलगता है। सुलगते सुलगते जब कोयला रुपी यादें थक जाती हैं तो राख बन जाती है। और हमारे दिल के किसी हिस्से में दफन हो जाती है। इसी राख से जन्म लेती हैं यह कम्बख्त यादें।

  • av &2358, &23, &2375, m.fl.
    185,-

    अपनी बात.. सबसे पहले करूँ याद मेरे ह्रदय में,सँजोये मेरे माता पिताजी के,आशीर्वाद को जिनके कारण में आज इस दुनिया में हूँ,वे नहीं अभी मेरे साथ पर उनका आशीर्वाद जीवनपर्यंत मेरे साथ रहा,उनकी याद उनकी स्मृति को सादर प्रणाम।। आदमी जो भोगता है, वही उसका अनुभव,वेदना,ज्ञान, बरबस उसकी कविता में झलकता है,प्रभावित करता है, मेरे मन में जो,कविता है,वो मेरा भोगा हुआ यथार्थ है। अपने आसपास घटित हो रही एक आम हिंदुस्तानी की रोजमर्रा की,ज़िन्दगी पर उसका अवलोकन,जो कविता,के रूप में प्रकट हुआ। में अब क्या कहूँ,कहा बहुत कुछ,अब,समझ ही,लेना, लहज़े में कुछ कमी हो,तो,मेरे चेहरे ही,को पढ़ लेना, कभी होती है,किसी,शख्स को दर्द की,इंतिहा इतनी, उसे,बयां किसे, करे,कैसे करे,अक्सर,सूझता ही नहीँ, जयेश वर्मा

  • av &2379, &23, &2350, m.fl.
    185,-

    मैं ने इस पुस्तक में ऐसी कविताओं का संग्रह किया है,जो कि अलग-अलग समय पर अलग-अलग परिस्थितियों में मानविय मन का प्रतिनिधित्व करते है।ये कवितायें मानविय मुल्यों को संवारती है, सहेजती है और सहज ही आत्मसात कर लेती है।कविता बस्तुत एक परिस्थिति परक दर्पण सा होता है,जो अपने वर्तमान समय का अक्स अपने में उतार लेता है।मैं ने भी बस इतनी कोशिश की है कि यह काव्य संग्रह समाज के हर वर्ग को पसंद आए। आपका अपना मदन मोहन(मैत्रेय)

  • av &23, &2344, &2325, m.fl.
    185,-

    वर्तमान तुष्टिकारी माहौल में यह पुस्तक एक आम आस्थावान भारतीय की व्यथा का दर्पण है और पाश्चात्य सभ्यता के अनुयायियों द्वारा सनातन के प्रतिमानों पर किये जा रहे अनवरत प्रहार के एवज़ में एक प्रत्युत्तर है। आज कल के सम्भ्रान्त, शिक्षित और प्रगतिशील युवा को अपनी भारतीय संस्कृति में सिर्फ़ खामियाँ दिखती हैं चाहे वह परम्परा हो,जाति सह आजीविका हो, पहनावा हो या चिकित्सा पद्धति। यह प्रयास उन कच्ची निगाहों के लिये उहापोह का कुहरा खत्म करेगा ये आशा है। आपके विचारों, आलोचनाओं, प्रशंसा या विरोध के स्वरों का स्वागत है इसके लिये Email - anjankumarthakur@yahoo.co.in पर आप अपनी उपस्थिति दर्ज़ कर सकते हैं।

  • av &2381, &23, &2367, m.fl.
    185,-

    "कुछ शब्द और....(क्यूंकि काफी कुछ कहना है)", एक कविता संकलन है। प्रेम, प्रकृति व समाज में होने वाली गतिविधियों को कविताओं के रूप में बताया गया है। ये किताब उन सभी पाठको के लिए उचित है जो कविताओं में रुचि रखते हैं तथा खुद भी लिखने का प्रयत्न करते हैं।

  • av &2358, &23, &2368, m.fl.
    169,-

    I, Ashish Kumar, currently residing in Delhi, is basically from Haridwar, Uttarakhand. Before छाले धूप के till date my below ten books have been published: 1) Love Incomplete 2) क्या है हिंदुस्तान में 3) Detail Geography of Space 4) The Ruiner 5) सच्चाई कुछ पन्नो में 6) कुछ अनोखे स्वाद और बातें 7) पूर्ण विनाशक 8) मोहल्ला 90 का 9) Samudramanthanam 10) Avyakhyaam

  • av &2309, &23, &2367, m.fl.
    275,-

    अनेक ऐसे लेख हैं जिनमें महज रिपोर्टिंग नहीं है बल्कि प्रामाणिक जानकारियों और आंकड़ों के साथ विश्लेषण भी है। ऐसा विश्लेषण जो उस विषय की दुनिया में पूरी विश्वसनीयता से ले जाता है साथ ही पाठक की स्मृति का हिस्सा हो जाता है अनिल अनुपके ये लेख उनकी रचनात्मक नेकनियति का एक सकारात्मक प्रमाण प्रस्तुत करते हैं कि प्रिंट मीडिया में सरोकार के साथ संप्रेषण की सफल संभावना बची हुई है। अनिल अनूप की इस पुस्तक को इन संदर्भों के साथ पढ़ने पर यह पुस्तक उन के सरोकारों के गहरे अर्थ खोलेगी।

  • av &2381, 2337, &2377, m.fl.
    1 679,-

  • av &23, &2346, 2342, m.fl.
    155,-

  • av &2358, &23, &2352, m.fl.
    199,-

  • av &2358, &23, &2375, m.fl.
    199,-

    एक लेखक / संरक्षक को ईमानदार, उदार, साहसी, ऊर्जावान, भावुक, स्पष्टवादी, प्रामाणिक और अपने पाठक या सदस्य या अनुयायी के प्रति समर्पित होना चाहिए और मैं अपने जीवन में इन सिद्धांतों का पालन कर रहा हूं। मैंने यह भी अनुभव किया कि यह मेरे लिए सम्मान की बात है कि पाठकों, सदस्यों और अनुयायियों के प्रेम के अतिरिक्त मेरे लिए और कोई सबसे अच्छा उपहार नहीं है। मैं उनकी चिंताओं के सार्थक ईमानदार संचार को सुनने और अपने अनुयायियों या पाठकों के साथ पर्याप्त सुझाव का उत्तर देने पर ध्यान केंद्रित कर रहा हूं, जो मुझे जब भी समय मिलता है तो मुझसे प्रसन्न करते हैं। मैंने यह पुस्तक पाठकों के लिए यह समझने के लिए लिखी है कि जब वे पढ़ेंगे तो यह कई भ्रांतियों को दूर कर देगा जो उनके लिए यह एक आदर्श और लाभदायक होगा। प्रत्येक युवा पुरुष या महिला के लिए बेहतर है कि वह एक छात्र, पेशेवर या व्यवसायी हो, शांतिपूर्ण, समृद्ध जीवन जीने की नैतिकता को समझे। प्रारंभिक अवस्था में यह जानना उनके हित में है कि उचित सेटिंग से उनका आने वाला भाग्य किस तरह से होगा। यह अच्छा या बुरा हो सकता है, यह आपकी आदतों, व्यवहार, मानसिकता, पूर्व-निर्धारित धारणाओं आदि पर निर्भर करेगा। आप आत्म-विश्लेषण करके और फिर उस पर कार्य करके इसकी गणना कर सकते हैं। मुझे आशा है कि प्रत्येक पाठक इसमें रुचि लेगा और इस अभ्यास को करना चाहेगा। मैं अपने सभी पाठकों के सुखी, स्वस्थ और शांतिपूर्ण जीवन की कामना करता हूं

  • av 2337, &2377, &2309, m.fl.
    199,-

    डॉ अशोक कुमार (1950), फीरोज़ गांधी पी0जी0 कालेज, रायबरेली में अंग्रेजी के विभागाध्यक्ष के पद पर कार्य करते हुए 2012 में सेवानिवृत्त हुए। उन्होंने अंग्रेजी भाषा और साहित्य पर आलोचनात्मक लेखन द्वारा एक नयी शोध तथा सोच को जन्म दिया। डाॅ0 अषोक कुमार ने अंग्रेजी के प्राध्यापक के रूप में दर्जनों सेमिनार, कान्फ्रेसेज, वर्कशॉप आदि में अपने शोधपत्र प्रस्तुत किये उनमें सकारात्मक सहभागिता की। भारतीय अग्रेंजी लेखकों में मनोहर मलगाँवकर तथा मंजू कपूर के जीवन और सहित्य पर दो पुस्तके डाॅ0 अशोक कुमार ने प्रकाशित की। इसके अतिरिक्त देश की प्रमुख शोधपत्रिकाओं तथा आलोचनात्मक संकलनों मेें आप के द्वारा लिखित दर्जनों विद्वतापूर्ण लेख प्रकाशित हुये। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से आपने डी0 फिल की उपाधि 1993 में प्राप्त की। जनमानस के लिये आपने अंग्रेजी में हिन्दुस्तान टाईम्स, पायनियर अवर लीडर समाचार पत्रों में साहित्य, कला, ज्योतिष पर लेख लिखे। आप छत्रपति शाहू जी महाराज विष्वविद्यालय, कानपुर के अंग्रेजी साहित्य की बोर्ड आफ स्ट्डीज के सदस्य रहे। देष की कई प्रमुख विश्वविद्यालयों की शैक्षणिक गतिविधियों से आप जुड़े रहे। डाॅ0 अशोक कुमार ने 2008 में अंग्रेजी में "दि एक्सप्रेशन" शोधपत्रिका का प्रकाशन प्रारम्भ किया। उसका सफल संपादन तथा प्रकाशन आपने किया। हिन्दी में भी आप के लेख समाचार पत्र तथा पत्रिकाओं में प्रकाशित हुये।

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